We are discuss about trading
दोस्तों हमने अपने पिछले पोस्ट में trading के बारे में कुछ बात किया था जिसमें आप को बताया गया था कि trading कब शुरू हुआ था और इसका कारण क्या था।
लेकिन अब हम trading को विस्तार से जानेंगे
जब एक समय शेयर को लोग केवल इसलिए खरीदते थे कि वह कंम्पनी को होने वाले आर्थिक लाभ को अपने शेयर के अनुपात में ले सके।
लेकिन जब trading होने लगी तो लोग सिर्फ कंम्पनी से मिलने वाले लाभ पर ही निर्भर नहीं रह गये बल्कि वह अब शेयरों को भी एक दुसरे में ऊचें निचे भाव पर खरीद और बेच कर भी अच्छा मुनाफा कमाने लगे। मतलब अब शेयरों का भी trading(कारोबार) होने लगा। इसको हम उदाहरण से समझाने का प्रयास करते है।
मान लिजिये A को किसी कंम्पनी का शेयर चाहिये इसके लिए वह शेयरदलाल के पास जाकर उस कंम्पनी के शेयर को अपने लिए खरीदने को कहता है लेकिन A जिस कंम्पनी के शेयर की मांग कर रहा है उस कंम्पनी के शेयर पहले ही बिक चुके है फिर शेयरदलाल उस शेयर को A के लिए कैसे खरीदे।
लेकिन अब शेयरदलाल उस शेयर को खरीदने के लिए कंम्पनी के पास ना जाकर उन लोगों के पास जाता है जिन्होंने उस कंम्पनी का शेयर खरीदा था और मान लिजिये उस कंम्पनी के शेयर का भाव Rs.100 तब शेयरदलाल उस कंम्पनी के तात्कालिक भाव से कुछ ज्यादा का भाव देकर मान लिजिये Rs.102 देकर खरीद लेता है इस लिहाज से बेचने वाले व्यक्ति को तात्कालिक भाव से Rs.2 ज्यादा का मुनाफा हो जाता है फिर शेयरदलाल उस शेयर को A को Rs.102 में लाकर दे देता है लेकिन यहाँ एक बात गौर करने वाली यह है की उस शेयर का भाव अब भी Rs.100 ही है। अब आप सोच रहे होगें वो कैसे तो आगे ध्यान से पढ़िये।
उस कंम्पनी का शेयर Rs.100 में था जो बात कंम्पनी भी जानती थी की उसके कंम्पनी के शेयर का भाव Rs.100 ही है। लेकिन जब शेयरदलाल उस कंम्पनी के शेयर को Rs.102 में खरीदता है तो वह उस व्यक्ति को Rs. 2 ज्यादा का लालच देता है जिसके पास उस कंम्पनी के शेयर है क्योंकि बिना कोई फायदे के कोई अपने शेयर को क्यों देगा । तब इस स्थिति में कंम्पनी उस शेयर को Rs.100 का ही मानेगी क्योंकि शेयरदलाल ने उस शेयर को किसी व्यक्ति से खरीदा है न की कंम्पनी से और जब शेयरदलाल कोई व्यक्ति से खरीदता है तो भला कंम्पनी का क्या दोष की आप ने उस कंम्पनी के शेयर को क्या भाव में खरीदा है। कंम्पनी तो बस उन्हें ही लाभ देगी जिनके पास उसका शेयर होगा।
इस असमंजस स्थिति को साफ करने के लिए कंम्पनीयों ने अपने शेयर का एक आधार वैल्यू या फेस वैल्यू का निर्धारण किया।
Fase Value - फेस वैल्यू या आधार भाव किसी शेयर का वह भाव होता है जिसको कंम्पनी मानती है भले ही बाजार में उसके शेयर को कितने में खरीदा या बेचा जा रहा हो। और भविष्य में कंम्पनी लाभ देगी तो वह आधार भाव को ही वास्तविक भाव मानकर देगी ।
या फिर ये भी मान सकते है कि आधार वैल्यू किसी शेयर का वास्तविक भाव होता है जबकि बाजार में जो भाव चल रहा है वो काल्पनिक है
उदाहरण के लिए - आज की तारीख में स्टेट बैंक आँफ इडिंया का आधार वैल्यू मात्र Rs. 1 है जबकि उसका Market Prise Rs.290 है आप सोच सकते है कितने का अतंर है तकरीबन 290 गुना का अतंर है।
आप तो जानते ही होगें की शेयर का भाव बड़ता घटता रहता है और जो भाव बड़ता घटता है वो शेयर के काल्पनिक भाव में होता है जबकि वास्तविक भाव या आधार भाव स्थिर रहता है l
Different Between Face Value And Imaginary Value
ऐसा इसलिए होता है की आधार भाव कंम्पनी निर्धारित करती है और काल्पनिक भाव शेयर खरीदने वालों के बीच trading निर्धारित करती है। और जब लोगों में किसी कंम्पनी के शेयर खरीदने की होड़ मच जाती है तो उस शेयर के काल्पनिक भाव में बड़ोतरी हो जाती है तथा जब शेयर बेचने वाले लोग ज्यादा हो जाते है तो उस शेयर का भाव कम होने लगता है।
अगर आप स्टेट बैंक आँफ इडिंया का शेयर खरीदना चाहते है तो आप को काल्पनिक भाव पर ही खरीदना पढे़गा लेकिन इसका मतलब बिल्कुल भी नहीं है की आप को उस शेयर को बेचने पर आधार भाव मिलेगा। आप ने उस शेयर को काल्पनिक भाव पर किसी से खरीदा है तो जाहिर सी बात है की आप भी उस शेयर को काल्पनिक भाव पर ही बेचेंगे।
अब ये मार्केट पर निर्भर करता है की जब आप ने शेयर खरीदा था तो उसका मार्केट भाव क्या था और जब आप बेच रहे है तो क्या था।
Trading depend on Imaginary Value
मतलब साफ है आधार भाव सिर्फ कंम्पनी मानती है जबकि हमलोग शेयर के काल्पनिक भाव को ही असली भाव मानकर खरीदते बेचते है।
इसलिए trading सिर्फ काल्पनिक भाव पर निर्भर करती है।
दोस्तों हमने अपने पिछले पोस्ट में trading के बारे में कुछ बात किया था जिसमें आप को बताया गया था कि trading कब शुरू हुआ था और इसका कारण क्या था।
लेकिन अब हम trading को विस्तार से जानेंगे
जब एक समय शेयर को लोग केवल इसलिए खरीदते थे कि वह कंम्पनी को होने वाले आर्थिक लाभ को अपने शेयर के अनुपात में ले सके।
लेकिन जब trading होने लगी तो लोग सिर्फ कंम्पनी से मिलने वाले लाभ पर ही निर्भर नहीं रह गये बल्कि वह अब शेयरों को भी एक दुसरे में ऊचें निचे भाव पर खरीद और बेच कर भी अच्छा मुनाफा कमाने लगे। मतलब अब शेयरों का भी trading(कारोबार) होने लगा। इसको हम उदाहरण से समझाने का प्रयास करते है।
मान लिजिये A को किसी कंम्पनी का शेयर चाहिये इसके लिए वह शेयरदलाल के पास जाकर उस कंम्पनी के शेयर को अपने लिए खरीदने को कहता है लेकिन A जिस कंम्पनी के शेयर की मांग कर रहा है उस कंम्पनी के शेयर पहले ही बिक चुके है फिर शेयरदलाल उस शेयर को A के लिए कैसे खरीदे।
लेकिन अब शेयरदलाल उस शेयर को खरीदने के लिए कंम्पनी के पास ना जाकर उन लोगों के पास जाता है जिन्होंने उस कंम्पनी का शेयर खरीदा था और मान लिजिये उस कंम्पनी के शेयर का भाव Rs.100 तब शेयरदलाल उस कंम्पनी के तात्कालिक भाव से कुछ ज्यादा का भाव देकर मान लिजिये Rs.102 देकर खरीद लेता है इस लिहाज से बेचने वाले व्यक्ति को तात्कालिक भाव से Rs.2 ज्यादा का मुनाफा हो जाता है फिर शेयरदलाल उस शेयर को A को Rs.102 में लाकर दे देता है लेकिन यहाँ एक बात गौर करने वाली यह है की उस शेयर का भाव अब भी Rs.100 ही है। अब आप सोच रहे होगें वो कैसे तो आगे ध्यान से पढ़िये।
उस कंम्पनी का शेयर Rs.100 में था जो बात कंम्पनी भी जानती थी की उसके कंम्पनी के शेयर का भाव Rs.100 ही है। लेकिन जब शेयरदलाल उस कंम्पनी के शेयर को Rs.102 में खरीदता है तो वह उस व्यक्ति को Rs. 2 ज्यादा का लालच देता है जिसके पास उस कंम्पनी के शेयर है क्योंकि बिना कोई फायदे के कोई अपने शेयर को क्यों देगा । तब इस स्थिति में कंम्पनी उस शेयर को Rs.100 का ही मानेगी क्योंकि शेयरदलाल ने उस शेयर को किसी व्यक्ति से खरीदा है न की कंम्पनी से और जब शेयरदलाल कोई व्यक्ति से खरीदता है तो भला कंम्पनी का क्या दोष की आप ने उस कंम्पनी के शेयर को क्या भाव में खरीदा है। कंम्पनी तो बस उन्हें ही लाभ देगी जिनके पास उसका शेयर होगा।
इस असमंजस स्थिति को साफ करने के लिए कंम्पनीयों ने अपने शेयर का एक आधार वैल्यू या फेस वैल्यू का निर्धारण किया।
Fase Value - फेस वैल्यू या आधार भाव किसी शेयर का वह भाव होता है जिसको कंम्पनी मानती है भले ही बाजार में उसके शेयर को कितने में खरीदा या बेचा जा रहा हो। और भविष्य में कंम्पनी लाभ देगी तो वह आधार भाव को ही वास्तविक भाव मानकर देगी ।
या फिर ये भी मान सकते है कि आधार वैल्यू किसी शेयर का वास्तविक भाव होता है जबकि बाजार में जो भाव चल रहा है वो काल्पनिक है
उदाहरण के लिए - आज की तारीख में स्टेट बैंक आँफ इडिंया का आधार वैल्यू मात्र Rs. 1 है जबकि उसका Market Prise Rs.290 है आप सोच सकते है कितने का अतंर है तकरीबन 290 गुना का अतंर है।
आप तो जानते ही होगें की शेयर का भाव बड़ता घटता रहता है और जो भाव बड़ता घटता है वो शेयर के काल्पनिक भाव में होता है जबकि वास्तविक भाव या आधार भाव स्थिर रहता है l
Different Between Face Value And Imaginary Value
ऐसा इसलिए होता है की आधार भाव कंम्पनी निर्धारित करती है और काल्पनिक भाव शेयर खरीदने वालों के बीच trading निर्धारित करती है। और जब लोगों में किसी कंम्पनी के शेयर खरीदने की होड़ मच जाती है तो उस शेयर के काल्पनिक भाव में बड़ोतरी हो जाती है तथा जब शेयर बेचने वाले लोग ज्यादा हो जाते है तो उस शेयर का भाव कम होने लगता है।
अगर आप स्टेट बैंक आँफ इडिंया का शेयर खरीदना चाहते है तो आप को काल्पनिक भाव पर ही खरीदना पढे़गा लेकिन इसका मतलब बिल्कुल भी नहीं है की आप को उस शेयर को बेचने पर आधार भाव मिलेगा। आप ने उस शेयर को काल्पनिक भाव पर किसी से खरीदा है तो जाहिर सी बात है की आप भी उस शेयर को काल्पनिक भाव पर ही बेचेंगे।
अब ये मार्केट पर निर्भर करता है की जब आप ने शेयर खरीदा था तो उसका मार्केट भाव क्या था और जब आप बेच रहे है तो क्या था।
Trading depend on Imaginary Value
मतलब साफ है आधार भाव सिर्फ कंम्पनी मानती है जबकि हमलोग शेयर के काल्पनिक भाव को ही असली भाव मानकर खरीदते बेचते है।
इसलिए trading सिर्फ काल्पनिक भाव पर निर्भर करती है।
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